सचिन "एक संस्कृति" Sachin Tendulkar "A Culture"
सचिन क्रिकेट की दुनिया को
अलविदा कहकर चले गये हैं लेकिन उन्होंने जो संस्कृति देश को दी है। जो आदर्श उन्होंने
देश के लोगों को दिया है। वो नये सचिन बनाने की राह तैयार करेगा।
कितना मुश्किल होता है
सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचकर भी ख़ुद को ख़ुदा की तरह पाक साफ़ और पूजनीय
रखना। ये सचिन की संस्कृति है जो उन्हें न सिर्फ बड़ा बनाती है बल्कि बड़े बनकर भी
बेहतरीन बने रहने की कला सिखाती है। सोचकर देखिए किसी एक शख़्स के बारे में जो
कामयाबी की बिल्कुल साफ़ सुथरी तस्वीर बना हो, जो करोड़ों उम्मीदों का देवता बना
हो, जो बिना किसी भेदभाव के सबका इकलौता हीरो बना हो। शायद सचिन के अलावा आपकी
नज़र किसी और का चित्रण नहीं कर पाएंगी।
आज का दौर फख्र करता है कि
वो उस युग का हिस्सा रहा जिसके सारथी सचिन तेंदुलकर रहे। फख्र है कि हमने सचिन
तेंदुलकर को मास्टर ब्लास्टर बनते देखा, महामानव बनते देखा, भारत रत्न बनते देखा
लेकिन क्या सिर्फ फख्र करना ही काफ़ी है? क्या सचिन बनने की उस
निर्माण प्रक्रिया से हमें सीख नहीं लेनी चाहिए? क्या सचिन संस्कृति
को आगे भी कायम रखने के लिए हमें उस शख़्स को आत्मसात नहीं कर लेना चाहिए?
सिर्फ क्रिकेट ही नहीं एक
उम्दा इंसान बनने की वो ख़ूबियां किसी एक शख़्स में कहां पाएंगे। वो जिसने कभी
किसी अंपायर के निर्णय पर उंगली नहीं उठायी, वो जो शून्य पर भी उतना ही अनुशासित
रहा जितना सौ पर, वो जो क्रिकेट के कालेपन के बीच में रहा फिर भी कभी दाग़दार नहीं
हुआ, वो जिसने मुल्क़ की उम्मीदों पर ख़रा उतरने के लिए हर बार ईमानदारी से कोशिश
की, जो खेल में हर बार देश के लिए भरोसेमंद रहा और विपक्षियों के लिए भय की वजह
बना, वो जो विरोधियों को हराता रहा और जितना हराता रहा उतना ही सम्मानित होता गया,
वो जो ताक़तवर होकर भी सौम्य रहा, सरल रहा, वो जिसने लक्ष्य के लिए जान लगाने के
अपने जज़्बे को कभी उम्र के आगे थकने नहीं दिया, इतना सब किस एक शख़्स में मिल
सकता है?
तीन पीढ़ियों ने उस एक
शख़्स की संस्कृति को महसूस किया है, उसे ख़ुद में जीया है और
उम्मीद है ये सचिन संस्कृति आनेवाली पीढ़ियों में चलती रहेगी।
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