Eknath Shinde: कैसे 'ठाणे के ठाकरे' का शागिर्द उद्धव पर पड़ा भारी, शिवसेना आलाकमान की आंखों में हमेशा खटका
ये कहानी शुरू होती है ठाणे के ठाकरे से. वो शख़्स जिसने मुंबई के बाहर बसे ठाणे शहर को अपनी जागीर बना ली थी, सिर्फ डंडे के बल पर नहीं, बल्कि अपनी लोकप्रियता की ताकत से. एक ऐसा शिवसैनिक जो झगड़े कराने नहीं, बल्कि झगड़े सुलझाने के लिए जाना जाता था, जिसकी अपनी समानांतर सरकार चलती थी, समानांतर अदालत चलती थी और जिसका दिया वचन ही उनका शासन होता था.
आनंद दीघे के शागिर्द हैं एकनाथ शिंदे
ठाणे में आनंद दीघे को गरीबों और लाचारों की मदद के लिए जाना जाता है, आज भी लोग शिव सैनिक आनंद दीघे को धर्मवीर के नाम से पुकारते हैं. धर्मवीर आनंद दीघे का वचन अगर ठाणे के लिए आदेश था तो शिवसैनिक आनंद दीघे के लिए अपने गुरू का आदेश ही अंतिम आदेश था.
बाला साहेब ठाकरे का ये शागिर्द कई बार विद्रोही भी रहा और सेना को बगावती तेवर भी दिखाए, लेकिन आखिर तक शिवसैनिक बने रहे. जब बाबा साहेब का ये शागिर्द अपने गुरू की अर्चना कर रहा था तो धर्मवीर आनंद दीघे साथ ही साथ समानान्तर अपने चेलों की एक भरोसेमंद सेना तैयार कर रहा था, जिसमें सबसे अहम था एकनाथ शिंदे.
ठाणे में ऑटो चलाते थे एकनाथ शिंदे
ठाणे में ऑटो चलाने वाले एकनाथ शिंदे ने खुद को आनंद दीघे में परिवर्तित करने की कोशिश की. वैसे ही कपड़े पहनना, वैसी ही दाढ़ी रखना, वैसे ही माथे पर टीका. उनके चलने का अंदाज़, यहां तक कि उनके बोलने के अंदाज़ को भी अपनाने की कोशिश की और उन्हीं के आशीर्वाद से ठाणे में म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की सीट जीती और राजनीतिक में कदम रखा. 26 अगस्त 2001 को एक कार एक्सिडेंट में घायल आनंद दीघे की इलाज के दौरान ठाणे के सुनीतादेवी सिंघानिया अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. हंगामा हुआ, अस्पताल में तोड़-फोड़ और आगजनी हुई लेकिन दीघे के जाने के बाद ठाणे का नया ठाकरे बने एकनाथ शिंदे.
सियासत में तेजी से आगे बढ़े एकनाथ संभाजी शिंदे
आनंद दीघे का ये शागिर्द सियासत की सीढ़ियों पर तेज़ी से चढ़ने लगा. भले ही आनंद दीघे इस दुनिया से जा चुके थे, लेकिन एकनाथ शिंदे और धर्मवीर आनंद दीघे का साथ आज तक नहीं छूटा. ठाणे ही नहीं पूरा महाराष्ट्र शिंदे में धर्मवीर की छवि को देखता है और यही वजह है कि ठाणे ने 4 बार एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र विधानसभा भेजा है और आज आनंद दीघे के बनाए मंच पर एकनाथ शिंदे का क़द इतना बड़ा हो गया कि वो शिवसेना सरकार में मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी बने.
उद्धव और शिंदे के बीच रही है अदावत
एकनाथ शिंदे का आनंद दीघे बनना हमेशा से ही शिवसेना के आलाकमान में मुसीबत का सबब रहा है, क्योंकि जिस तरह से आनंद दीघे की मुट्ठी में ठाणे रहती थी, शिवसेना के आलाकमान को हमेशा से ये डर रहा है कि कहीं एकनाथ शिंदे को भी कल्याण और ठाणे इलाके में अपनी समानान्तर सरकार चलाने का मौका न मिल जाए और पार्टी में खेमेबाज़ी न शुरू हो जाए और यही है उस अदावत की वजह जो उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच पिछले कई सालों से रही है.
शिंदे के दबदबे से खुश नहीं थे ठाकरे
शिवसेना के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक ठाकरे हमेशा पार्टी में शिंदे के दबदबे को लेकर 'नर्वस' महसूस करते थे और उन्हें छोटा दिखाने की कोशिश में रहते थे. नज़रअंदाज़ करना. देर तक इंतज़ार कराना. मंत्रालय के प्रोजेक्ट रोकना. फैसलों पर ब्रेक लगाना. मनचाहे अफसर न देना. अहम फैसलों में सलाह नहीं लेना. साइड लाइन करने की कोशिश करते रहना. शिंदे के दिल में ये लगातार एक गड्ढा तैयार करता रहा.
जब मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे शिंदे
वैसे तो 2019 में चुनाव के बाद शिंदे को विधायक दल का नेता चुना गया था और माना जा रहा था कि वही मुख्यमंत्री बनेंगे. एनसीपी और कांग्रेस की पसंद भी शिंदे ही थे, लेकिन राजनीतिक उलट-फेर में शिंदे मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए और उन्हें उद्धव सरकार में भारी-भरकम शहरी विकास मंत्रालय देकर मना लिया गया, लेकिन उसके बाद से कल्याण और ठाणे में उनके कद को बढ़ने से रोकने के लिए उनकी और उनके फैसलों की अनदेखी की जाती रही. यही अदावत आज शिवसेना ही नहीं बल्कि उद्धव ठाकरे के राजनीतिक करियर पर भारी पड़ रही है.
बेचैन महसूस कर रहे थे शिंदे
इतना ही नहीं एकनाथ शिंदे की सियासी ताकत हैं ठाणे के युवा नेता और पश्चिमी महाराष्ट्र के शिवसैनिक, लेकिन जब से आदित्य ठाकरे ने राजनीति में प्रवेश किया है. ठाणे के युवाओं की जगह मुंबई और कोंकण के युवाओं को पार्टी में तरजीह दी जाने लगी है. शिंदे को इससे बेचैनी महसूस हो रही थी. पिछले 5 सालों में कम से कम 3 मौके ऐसे रहे जब ठाणे में उनके समर्थन में बड़े-बड़े पोस्टर लगे जिसमें शिंदे को भविष्य का मुख्यमंत्री घोषित किया गया.
इससे ठाकरे की नाराज़गी और बढ़ गई. उद्धव ने शिंदे को किनारे करते हुए अनिल परब, अनिल देसाई और अरविंद सावंत जैसे शिवसेना के नेताओं के साथ खुद को घेर लिया. इससे पार्टी में क्षेत्रीय विभाजन शुरू होने लगा. इसी का फायदा उठाया एकनाथ शिंदे ने, जिसे उद्धव ठाकरे देख भी नहीं पाए
ठाकरे को पश्चिम महाराष्ट्र की अनदेखी पड़ी भारी
उद्धव जहां मुंबई और कोंकण कनेक्शन के नेताओं को तरजीह देते रहे औक पश्चिमी महाराष्ट्र को अनदेखा करते रहे. शिंदे ने मौके को लपका और आज शिंदे के साथ जो विधायक हैं उनमें से अधिकतर ठाणे-कल्याण और पश्चिमी महाराष्ट्र बेल्ट से हैं.
आनंद दीघे के शागिर्द हैं एकनाथ शिंदे
ठाणे में आनंद दीघे को गरीबों और लाचारों की मदद के लिए जाना जाता है, आज भी लोग शिव सैनिक आनंद दीघे को धर्मवीर के नाम से पुकारते हैं. धर्मवीर आनंद दीघे का वचन अगर ठाणे के लिए आदेश था तो शिवसैनिक आनंद दीघे के लिए अपने गुरू का आदेश ही अंतिम आदेश था.
बाला साहेब ठाकरे का ये शागिर्द कई बार विद्रोही भी रहा और सेना को बगावती तेवर भी दिखाए, लेकिन आखिर तक शिवसैनिक बने रहे. जब बाबा साहेब का ये शागिर्द अपने गुरू की अर्चना कर रहा था तो धर्मवीर आनंद दीघे साथ ही साथ समानान्तर अपने चेलों की एक भरोसेमंद सेना तैयार कर रहा था, जिसमें सबसे अहम था एकनाथ शिंदे.
ठाणे में ऑटो चलाते थे एकनाथ शिंदे
ठाणे में ऑटो चलाने वाले एकनाथ शिंदे ने खुद को आनंद दीघे में परिवर्तित करने की कोशिश की. वैसे ही कपड़े पहनना, वैसी ही दाढ़ी रखना, वैसे ही माथे पर टीका. उनके चलने का अंदाज़, यहां तक कि उनके बोलने के अंदाज़ को भी अपनाने की कोशिश की और उन्हीं के आशीर्वाद से ठाणे में म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन की सीट जीती और राजनीतिक में कदम रखा. 26 अगस्त 2001 को एक कार एक्सिडेंट में घायल आनंद दीघे की इलाज के दौरान ठाणे के सुनीतादेवी सिंघानिया अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. हंगामा हुआ, अस्पताल में तोड़-फोड़ और आगजनी हुई लेकिन दीघे के जाने के बाद ठाणे का नया ठाकरे बने एकनाथ शिंदे.
सियासत में तेजी से आगे बढ़े एकनाथ संभाजी शिंदे
आनंद दीघे का ये शागिर्द सियासत की सीढ़ियों पर तेज़ी से चढ़ने लगा. भले ही आनंद दीघे इस दुनिया से जा चुके थे, लेकिन एकनाथ शिंदे और धर्मवीर आनंद दीघे का साथ आज तक नहीं छूटा. ठाणे ही नहीं पूरा महाराष्ट्र शिंदे में धर्मवीर की छवि को देखता है और यही वजह है कि ठाणे ने 4 बार एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र विधानसभा भेजा है और आज आनंद दीघे के बनाए मंच पर एकनाथ शिंदे का क़द इतना बड़ा हो गया कि वो शिवसेना सरकार में मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी बने.
उद्धव और शिंदे के बीच रही है अदावत
एकनाथ शिंदे का आनंद दीघे बनना हमेशा से ही शिवसेना के आलाकमान में मुसीबत का सबब रहा है, क्योंकि जिस तरह से आनंद दीघे की मुट्ठी में ठाणे रहती थी, शिवसेना के आलाकमान को हमेशा से ये डर रहा है कि कहीं एकनाथ शिंदे को भी कल्याण और ठाणे इलाके में अपनी समानान्तर सरकार चलाने का मौका न मिल जाए और पार्टी में खेमेबाज़ी न शुरू हो जाए और यही है उस अदावत की वजह जो उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच पिछले कई सालों से रही है.
शिंदे के दबदबे से खुश नहीं थे ठाकरे
शिवसेना के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक ठाकरे हमेशा पार्टी में शिंदे के दबदबे को लेकर 'नर्वस' महसूस करते थे और उन्हें छोटा दिखाने की कोशिश में रहते थे. नज़रअंदाज़ करना. देर तक इंतज़ार कराना. मंत्रालय के प्रोजेक्ट रोकना. फैसलों पर ब्रेक लगाना. मनचाहे अफसर न देना. अहम फैसलों में सलाह नहीं लेना. साइड लाइन करने की कोशिश करते रहना. शिंदे के दिल में ये लगातार एक गड्ढा तैयार करता रहा.
जब मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे शिंदे
वैसे तो 2019 में चुनाव के बाद शिंदे को विधायक दल का नेता चुना गया था और माना जा रहा था कि वही मुख्यमंत्री बनेंगे. एनसीपी और कांग्रेस की पसंद भी शिंदे ही थे, लेकिन राजनीतिक उलट-फेर में शिंदे मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए और उन्हें उद्धव सरकार में भारी-भरकम शहरी विकास मंत्रालय देकर मना लिया गया, लेकिन उसके बाद से कल्याण और ठाणे में उनके कद को बढ़ने से रोकने के लिए उनकी और उनके फैसलों की अनदेखी की जाती रही. यही अदावत आज शिवसेना ही नहीं बल्कि उद्धव ठाकरे के राजनीतिक करियर पर भारी पड़ रही है.
बेचैन महसूस कर रहे थे शिंदे
इतना ही नहीं एकनाथ शिंदे की सियासी ताकत हैं ठाणे के युवा नेता और पश्चिमी महाराष्ट्र के शिवसैनिक, लेकिन जब से आदित्य ठाकरे ने राजनीति में प्रवेश किया है. ठाणे के युवाओं की जगह मुंबई और कोंकण के युवाओं को पार्टी में तरजीह दी जाने लगी है. शिंदे को इससे बेचैनी महसूस हो रही थी. पिछले 5 सालों में कम से कम 3 मौके ऐसे रहे जब ठाणे में उनके समर्थन में बड़े-बड़े पोस्टर लगे जिसमें शिंदे को भविष्य का मुख्यमंत्री घोषित किया गया.
इससे ठाकरे की नाराज़गी और बढ़ गई. उद्धव ने शिंदे को किनारे करते हुए अनिल परब, अनिल देसाई और अरविंद सावंत जैसे शिवसेना के नेताओं के साथ खुद को घेर लिया. इससे पार्टी में क्षेत्रीय विभाजन शुरू होने लगा. इसी का फायदा उठाया एकनाथ शिंदे ने, जिसे उद्धव ठाकरे देख भी नहीं पाए
ठाकरे को पश्चिम महाराष्ट्र की अनदेखी पड़ी भारी
उद्धव जहां मुंबई और कोंकण कनेक्शन के नेताओं को तरजीह देते रहे औक पश्चिमी महाराष्ट्र को अनदेखा करते रहे. शिंदे ने मौके को लपका और आज शिंदे के साथ जो विधायक हैं उनमें से अधिकतर ठाणे-कल्याण और पश्चिमी महाराष्ट्र बेल्ट से हैं.
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